A retiring thought for the night…

As I lie down to sleep for the night

I realise that the day next is not a guarantee

He who sleeps with confidence of a day yonder

Fails to understand that life beyond the day lived

Is not a promise, but maybe one day more, until the appointed time

कल ग़म से मुलाक़ात हुई शाम के ढलते

कल ग़म से मुलाक़ात हुई शाम के ढलते 

पूछा उसने मुझसे एक अरसा हुआ एहसास किया नहीं तुमने मुझको ऐ जलील

मैंने भी कहा, ऐ ग़म 

तू ही तो था जिसने मुझको बे-गमी की राह दिखाई 

अब ख़ुशी से मुलाक़ात हो गयी है 

ख़ुशी ख़ुशियों में तब्दील हो गयी है 

गर तू लौट कर भी आना चाहे ऐ ग़म मेरी ज़िंदगी में

मेरी ख़ुशियाँ ही तुझको निपट जाएँगे 

ऐ ग़म, अब ढूँढ कोई काम और बेहतर तू 

या फिर ढूँढ कमज़ोर कोई और तू 

ख़ुशियों ने मेरा हौसला बुलन्द किया हुआ है 

अब डर लगता नहीं पेचीदा ज़िंदगी से 

जी लूँगा जिस हाल में भी मुक़द्दर ने लिखा है मेरा मुस्तक़ाबिल 

साथ है ख़ुशी का जीने के लिए

बाक़ी सब तो ला हासिल है