सुनो कहानी एक कौव्वे और चिड़िया की
ये कहानी है देवलाली में रहने वाले एक कौवे और चिड़िया की। बोहत साल पहले की बात है। मेरे दादा और दादी अक्सर जाया करते थे हर साल डिसेम्बर के महीने में जब वहाँ सर्दियों का मौसम होता है। उस साल भी वो लोग डिसेम्बर के महीने में हर बार की तरह चले गये।
दादा और दादी देवलाली में नूर सैनटॉरीयम में रहते थे। उस महीने में उनको नूर सैनटॉरीयम के ब्लॉक H१ में जगह मिली थी। नूर सैनटॉरीयम के ब्लॉक्स L शेप में हैं और ब्लॉक H ऐसी जगह है जहाँ से पहला ब्लॉक A और आख़री ब्लॉक G दोनो दिखते हैं। ब्लाक H के पीछे एक दरखत पर घर था एक चिड़िया का और कुछ टहनी दूर घर था एक कौवे का।
चिड़िया का घर बना था चावल से – एक छोटा सा प्यारा घर। कौवे का घर बना था नमक से।
एक दिन चिड़िया के घर पर दावत थी, उस दिन ही दादा ओर दादी देवलाली पहुँचे थे। चिड़िया ने अपने चावल के घर से चावल पकाया, बिरयानी बनाई। खाना पकाते वक़्त उसको पता चला के घर में नमक ख़त्म हुआ था। नूर सैनटॉरीयम के दूसरे गेट के सामने नूर वीला था, जिसके बग़ल में सिंधी की किराने कि दुकान थी। सिंधी और हम सब का बरसों पुराना वास्ता था क्यों के हम नूर सैनटॉरीयम हर साल डिसेम्बर में जाया करते थे। चिड़िया का नमक ख़त्म हुआ था इसलिए वो जल्दी जल्दी सिंधी के दुकान पोहोंची। इत्तेफ़क से उस दिन सिंधी की दुकान बंद थी। अब चिड़िया परेशान हो गयी। दावत दोपहर की थी, उस वक़्त बज रहेय थे तक़रीबन ११।३० और गर उसे नमक नहीं मिलेगा तो उसकी दावत ख़राब हो जाएगी।
वो परेशान लौट रही थी अपने घर, ब्लॉक H से होकर निकल रही थी, तब उसकी नज़र पड़ी ब्लॉक H१ पर और उसने देखा की अमीनाबीबी अंदर थी। अमीनाबीबी, मेरी दादी थी, जो उसी दिन ही देवलाली पोहोंची थी। ख़ुश हो कर चिड़िया उनके पास गयी और उसने अपना हाल सुनाया। कहा मुझे आप नमक दे दीजिए तो मेरी दावत की तय्यारी हो जाएगी। दादी ने कहा, चिड़िया मैं तो आज ही आई हूँ, और दादा गए हैं बज़ार समान ख़रीदने। उनको आने वक़्त लग जाएगा। तू थोड़ी देर से आ जाना, में नमक दे दूँगी।
चिड़िया फिर परेशान हो गयी। दोपहर की दावत थी और वक़्त कम था। उसे नमक की फ़ौरन ज़रूरत थी। उसने सोचा क्या करें। तब दादी ने कहा की क्यों ना अपने पड़ोसी कौवे से नमक ले लो, उसका तो घर ही नमक का है, वो दे देगा। चिड़िया ख़ुश हो जाती है, कहती है मुझे ख़ुद को क्यों नहीं सूझा, चलो में उसी से ही माँग लेती हूँ। चिड़िया कौवे के घर चली गयी। दरवाज़ा खटखटाया। कौवे ने दरवाज़ा खोला, बाहर आया और पूछा, “अरे चिड़िया, तुम आज यहाँ कैसे, क्या हुआ?”। चिड़िया ने कहा, “कौव्वे भय्या आप की मदद चाहिए थी। मेरे घर दावत है आज और घर में नमक नहीं है खाना पकाने के लिए। क्या आप मुझेय थोड़ा नमक दोगे?”। इसपर कौव्वा ग़ुस्सा हो जाता है। उसने चिड़िया से कहा “अरे चिड़िया, क्या बात कर रही हो? में अपने घर में से तुम्हें नमक कैसे दे सकता हूँ? मेरा घर नमक का है और तुमको नमक दूँगा तो मेरा घर कमज़ोर हो जाएगा। नहीं, में बिलकुल नहीं दूँगा तुमको मेरे घर में से नमक। तुम जाओ यहाँ से।” चिड़िया उससे मिन्नतें करती है के उसकी दावत ख़राब हो जाएगी अगर खाने में नमक नहीं डलेगा, लेकिन क़व्वे पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है और वो चिड़िया को घर से जाने कहता है।
चिड़िया मायूस हो कर दादी के ब्लॉक H के पास से गुज़र ही रही थी के तब तक दादा बाज़ार से लौट आते हैं। दादी ने चिड़िया को आवाज़ लगाई और पूछा के नमक मिला या नहीं। चिड़िया कहती है नहीं मिला। तब दादी ने उसे कहा के अब उनके पास नमक आ गया है और वो ले जा सकती है। चिड़िया ख़ुश हो जाती है और नमक ले जाती है। उस दिन, चिड़िया की दावत अच्छे से हो जाती है और वो दादी का शाम को आ कर शुक्रिया अदा करती है। क़व्वे के उस दिन के बर्ताव का असर चिड़िया पर बुरा पड़ता है और उसे बुरा लगता है के पड़ोसी होकर भी क़व्वे ने उसकी वक़्त पर मदद नहीं की। ख़ैर वो दिन निकल जाता है, और चिड़िया और क़व्वा अपने अपने राह पर लग जाते हैं। दादा और दादी भी एक महीने बाद, याने जनवरी में बम्बई लौटने वाले थे, लेकिन अचानक दादा ने सोचा, इस बार और रहा जाए, सो वो दोनो और भी रुक गए।
जनवरी का महीना वैसे तो सर्दी का महीना है। देवलाली में डिसेम्बर और जनवरी में कड़ाके की सर्दी होती है। इस बार जनवरी के महीने में एक दिन अचानक से ज़ोरदार बारिश हुई। बारिश इतनी ज़ोर से थी के सब चौंक गए। और सब से ज़्यादा चौंक गए हमारे कौव्वे भाई साहब।
क़व्वे का घर था नमक का, और नमक के घर को ख़तरा था पानी से। जनवरी के उस अचानक से आए बारिश ने कौव्वे के नमक वाले घर को पानी पानी कर दिया। अचानक से क़व्वे के पास कोई घर नहीं था, वो बेघर हो गया था। ज़ोरदार बारिश और सर छुपाने के लिए छत भी नहीं, ऐसे में क़व्वे की हालत ख़राब हो गयी। तब उसने सामने देखा चिड़िया का घर। उसने बेधड़क होकर चिड़िया का दरवाज़ा खटखटाया। चिड़िया ने दरवाज़ा खोला और क़व्वे को देख कर हैरान हो गयी, पूछा, “क्या हुआ क़व्वे, अचानक से मेरे दरवाज़े पर कैसे आज?”। क़व्वे ने कहा, “चिड़िया बारिश तेज़ है, और मेरा घर बह गया है, मुझे अपने घर में रहने की जगह दोगी क्या?”। चिड़िया को कुछ दिन पहले की बात याद आई, जब उसने ज़रूरत पड़ने पर क़व्वे से मदद माँगी थी और क़व्वे ने बिना हिचक मना कर दिया था। चिड़िया का मन भी वोहि चाह रहा था के क़व्वे को मना कर दे, उसे भी वक़्त पर मदद ना करे।
लेकिन चिड़िया दिल की अच्छी थी, उसने क़व्वे को अपने घर में पनाह दे दी और उसे खाना भी परोसा। जब बारिश थम गयी, और क़व्वा अपने घर लौटने लगा, तब चिड़िया ने क़व्वे को अपने उस दिन के बर्ताव के बारे में याद दिलाया और कहा के ऐ क़व्वे, तुमने मुझे मेरी ज़रूरत के वक़्त पर मदद करने से मना कर दिया था। जब तुम्हें ज़रूरत पड़ी, तब सब से पहले तुम अपने पड़ोसी याने मेरे पास आए; में भी उस वक़्त तुम्हारे पास आई थी क्यों के तुम मेरे पड़ोसी हो। लेकिन तुमने उस वक़्त मुझे ये कह कर मना कर दिया था क्यों के तुम्हारा घर नमक का था और मुझे नमक दे कर तुम्हारे घर को नुक़सान पहुँचता। आज देखो क़ुदरत का खेल, बारिश ने तुम्हारे घर को बहा कर रख दिया और तुमको मेरी ज़रूरत पड़ गयी। में चाहती तो में भी तुम्हें तुम्हारी तरह मदद करने से मना कर सकती थी। लेकिन अगर ज़रूरत के वक़्त कोई किसी के काम ना आए, ख़ासकर गर पड़ोसी अपने पड़ोसी के काम ना आए, तो इंसानियत ख़त्म हो जाएगी। मैंने एक पड़ोसी का और इंसानियत का फ़र्ज़ पूरा किया, जो तुमने उस वक़्त नहीं किया।
क़व्वा ये बात सुनकर हैरान हुआ, उसे बड़ा अफ़सोस हुआ और शर्मिंदा भी हुआ। उसने चिड़िया से माफ़ी माँगी। ये सब दादी बाहर से देख रही थी। चिड़िया की बात ख़त्म होने पर, दादी ने भी क़व्वे से कहा के उसने चिड़िया की मदद ना करके ग़लती की थी, लेकिन चिड़िया आज उसके काम आकार अपने अच्छाई का सबूत दिया।
हर इंसान को ये ध्यान रखना चाहिए के वक़्त की हर शै ग़ुलाम है, वक़्त का हर शै पर राज होता है। वक़्त पर अगर अपने पड़ोसी, अपने बिरादर या अपने अज़ीज़ों के काम ना आ सको तो वक़्त बदलते वक़्त नहीं लगता और जब ख़ुद पर कोई मुसीबत आ जाए तो क्या पता फिर कोई काम आए या ना आए।
यह थी मेरे मर्हूम दादा, मुनिरुद्दीन मोहम्मद इब्राहिम हैंदादे की सिखाई हुई कहानी, जो आज मैं अपने ब्लॉग पर डाल रहा हूँ, कोई ख़ास कहानी तो नहीं शायद, लेकिन बचपन में रोज़ रात सोने से पहले दादा-दादी की कहानियों को यादगार समझ कर उसे किसी तरह ज़िंदा रखने का सोच कर, मैंने इसे अल्फ़ाज़ों में उतार लिया।