सोचने की कुव्त फ़िलहाल शायद छुट्टी पर है
इतने सारे मसले मसाइल वैसे ही मेज़ पर हैं
उनको सुलझाऊँ कैसे ये बन जाएगी एक और सोच नयी
किस कोना-ए-मेज़ पर इसको रखूँ? ये भी एक इज़ाफ़ा-ए-सोच है
बेहतर तो ये होगा के मेज़ पर पड़े काग़ज़ों पर ही कुछ गौर-ए-ज़ेहन करूँ
शायद फिर कोई नयी सोच के लिये कुछ जगह बने


Alhumdulillah